
अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा एक बड़ा नाम अब स्मृतियों में सिमट गया है। पूर्व सांसद और आंदोलन के प्रमुख चेहरा रहे डॉ. रामविलास दास वेदांती का निधन हो गया। उन्होंने मध्य प्रदेश के रीवा में अंतिम सांस ली।
उनके निधन की खबर से अयोध्या से लेकर संत समाज तक शोक की लहर दौड़ गई है।
रामकथा के दौरान बिगड़ी तबीयत
जानकारी के मुताबिक, डॉ. वेदांती 10 दिसंबर को दिल्ली से रीवा पहुंचे थे, जहां रामकथा का आयोजन चल रहा था।
कथा के दौरान ही उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
सोमवार को हालत ज्यादा गंभीर होने पर उन्हें दिल्ली रेफर करने की तैयारी थी। एयर एंबुलेंस भी मंगाई गई, लेकिन घने कोहरे के कारण वह लैंड नहीं कर सकी। किस्मत ने जैसे रास्ता रोक लिया—और उसी दिन उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया।
कैसे बने राम जन्मभूमि आंदोलन का प्रमुख चेहरा
डॉ. रामविलास दास वेदांती राम जन्मभूमि आंदोलन के उन चेहरों में थे, जिन्होंने इसे सड़क से संसद तक पहुंचाया। आंदोलन को जन-जन तक ले गए। सांसद रहते हुए संसद में मंदिर पक्ष को मजबूती से रखा। राम जन्मभूमि न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष रहे। उनका नाम बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में भी आया, लेकिन 2020 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा था— यह कोई पूर्व नियोजित साजिश नहीं थी।
दो बार सांसद, लंबा सियासी सफर
डॉ. वेदांती का राजनीतिक सफर भी खासा प्रभावशाली रहा— 1996: मछली शहर लोकसभा सीट से सांसद। 1998: प्रतापगढ़ से लोकसभा पहुंचे (अटल सरकार के दौरान) संत होने के बावजूद वे राजनीति और धर्म के संगम का चेहरा बने रहे।
12 साल में छोड़ा घर, जीवन भर राम के नाम
7 अक्टूबर 1958 को रीवा के गुढ़वा गांव में जन्मे वेदांती ने महज 12 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था। घर छोड़कर अयोध्या पहुंचे,
हनुमानगढ़ी के महंत अभिराम दास के शिष्य बने। संस्कृत के प्रकांड विद्वान, सरयू तट पर स्थित ‘हिंदू धाम’ में रहते थे। उनका निजी आश्रम ‘वशिष्ठ भवन’ आज भी उनकी तपस्या की गवाही देता है।

CM योगी का भावुक संदेश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने X (पूर्व ट्विटर) पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा— “डॉ. रामविलास वेदांती का निधन सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका जाना एक युग का अवसान है।”
उन्होंने कहा कि उनका जीवन धर्म, समाज और राष्ट्र सेवा को समर्पित रहा।
डॉ. रामविलास दास वेदांती सिर्फ एक संत या नेता नहीं थे, वह राम मंदिर आंदोलन की जीवित आवाज थे। आज वह आवाज शांत हो गई है,
लेकिन अयोध्या की हवाओं में उनका नाम—हमेशा गूंजता रहेगा।
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